बिना भेद बाहर मत भटको बाहर भटकिया हे कई,
हरे अड़सट तीरत यही बता दु कर दर्शन काया माही,
हाॅं कर दर्शन परदे माहि ।।
हरे पाँव में तेरे पदम बिराजे पीतल में भगवत यही,
हरे गोड़े में गौरक का वासा डोल रहा दुनिया माही,
हाॅं डोल रहा दुनिया माही ।।
बिना भेद बहार मत भटको….
हरे जांगो में जगदीश बिराजे कमर केदारथ हे याही,
हरे देवल में देवी का वासा अखंड जोत जलती याही,
हां अखंड जोत जलती याही।।
बिना भेद बहार मत भटको….
हरे हाथ बने हस्तिनापुर नगरी ऊंगली बनी पांचो पांडव,
हरे सीने में हनुमान बिराजे लड़ने से डरता नाहीं,
हां लड़ने से डरता नाहीं
बिना भेद बाहर मत भटकों…
हरे मुख बना तेरा मक्का मदीना नाक की दर्गा है याही,
हरे कान बने कनकापुर नगरी सत्य वचन सुनले याही,
हां सत्य वचन सुनले याही।।
बिना भेद बाहर मत भटको…
हरे नेत्र बने तेरे चंदा सूरज देख रहा दुनियां माही,
अरे कहे कबीर सुनो भई साधो लिखा लेख मिटता नाहीं,
हां लिखा लेख मिटता नाहीं।।
बिना भेद बहार मत भटको…
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