वो सुमरण एक न्यारा रे संतो वो सुमरण एक न्यारा है

जिस सुमरण से पाप कटे हैं-

हाॅं जिस सुमरण से पाप कटे हैं

होवेगा भवजल पारा रे संतो वो सुमरण एक न्यारा है…


माला न फेर मुख जीब्या ना हाले, आप ही होत उच्चारा है

सभी के घट एक रचना रे लागी-

हाॅं सभी के घट एक रचना रे लागी

जो नहीं समझै गवारा रे संतो वो सुमरण एक न्यारा है…


अखंड तार टुटे ना कबहु सोहम शब्द उच्चारा है 

ज्ञान आंख म्हारे सतगुरु खोले –

ज्ञान आंख म्हारे सतगुरु खोले

हां  जानेगा जानन हारा रे संतो वो सुमरण एक न्यारा है…


पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण चारो दिशा में पचहारा है

कहे कबीर सुनो भई साधो – कहे कबीर सुनो भई साधो

ऐसा सत्य ले वो टकसाला रे संतो

वो सुमरण एक न्यारा है…


जिस सुमरण से पाप कटे हैं-

हाॅं जिस सुमरण से पाप कटे हैं

होवेगा भवजल पारा रे संतो वो सुमरण एक न्यारा है…

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