Kabir bhajan
.धन्य तेरी करताल कला का पार नहीं कोई पाता है
ह धन्य तेरी करताल कला का पार नहीं कोई पाता है
धन्य तेरी करताल कला पार नहीं कोई पाता है ।।
निराकार भी होकर स्वामी सबका तू पालन करता है
निराकार निरभंजन स्वामी जरण मरण मिट जाता है ।।
धन्य तेरी करताल कला का पार नहीं कोई पाता है
धन्य तेरी करताल कला पार नहीं कोई पाता ह
तेरी सता का खेल निराला बिरला ही मेहरम पाता है
जिस पर कृपा बहे निस तेरी वहा को दरस दिखाता है ।।
धन्य तेरी करताल कला का पार नहीं कोई पाता है
धन्य तेरी करताल कला पार नहीं कोई पाता ह
ऋषि मुनि और संत महात्मा निसदिन ध्यान लगाता है
चार खान चैरासी के माई तू ही नजर एक आता है ।।
धन्य तेरी करताल कला का पार नहीं कोई पाता है
धन्य तेरी करताल कला पार नहीं कोई पाता है
पत्ते पत्ते पर रोशनी तेरी बिजली सी चमक दिखलाता है
चकित भयामन बु़द्धी तेरी दिवादास गुण गाता है ।।
धन्य तेरी करताल कला का पार नहीं कोई पाता है
धन्य तेरी करताल कला पार नहीं कोई पाता है ||
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Dhanya Kabir bhajan lyrics
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