Kabir ke dohe
महान संत कबीरदास जी महाराज ने अनेक दोहो की रचना की जिसमे 20 दोहो और उनके भावार्थ को निचे दिया गया एवं उनकी PDF फाईल डाउनलोड का लिंक अंत में दिया गया है यदि यह पोस्ट आपको अच्छी लगे तो इसे अपने व्हाटसअप ग्रुप में जरूर शेयर करें ।
Kabir das ke dohe
कबीरदासजी के अनमोल दोहे और उनके भावार्थ
गुरु गोविंद दोउ खड़ेए काके लागूं पाँय ।
बलिहारी गुरु आपनेए गोविंद दियो मिलाय॥
भावार्थ – कबीर दास जी इस दोहे में कहते हैं कि अगर हमारे सामने गुरु और भगवान दोनों एक साथ खड़े हों तो आप किसके चरण स्पर्श करेंगेघ्
गुरु ने अपने ज्ञान से ही हमें भगवान से मिलने का रास्ता बताया है इसलिए गुरु की महिमा भगवान से भी ऊपर है और हमें गुरु के चरण स्पर्श करने चाहिए।
यह तन विष की बेलरीए गुरु अमृत की खान ।
शीश दियो जो गुरु मिलेए तो भी सस्ता जान ।
भावार्थ- कबीर दास जी कहते हैं कि यह जो शरीर है वो विष जहर से भरा हुआ है और गुरु अमृत की खान हैं।
अगर अपना शीशसर देने के बदले में आपको कोई सच्चा गुरु मिले तो ये सौदा भी बहुत सस्ता है।
सब धरती काजग करूए लेखनी सब वनराज ।
सात समुद्र की मसि करूँए गुरु गुण लिखा न जाए ।
भावार्थ- अगर मैं इस पूरी धरती के बराबर बड़ा कागज बनाऊं और दुनियां के सभी वृक्षों की कलम बना लूँ और
सातों समुद्रों के बराबर स्याही बना लूँ तो भी गुरु के गुणों को लिखना संभव नहीं है।
ऐसी वाणी बोलिए मन का आप खोये ।
औरन को शीतल करेए आपहुं शीतल होए ।
भावार्थ- कबीर दास जी कहते हैं कि इंसान को ऐसी भाषा बोलनी चाहिए जो सुनने वाले के मन को बहुत अच्छी लगे।
ऐसी भाषा दूसरे लोगों को तो सुख पहुँचाती ही हैए इसके साथ खुद को भी बड़े आनंद का अनुभव होता है।
बड़ा भया तो क्या भयाए जैसे पेड़ खजूर ।
पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर ।
भावार्थ- कबीर दास जी कहते हैं कि खजूर का पेड़ बेशक बहुत बड़ा होता है लेकिन ना तो वो किसी को छाया देता है और फल भी
बहुत दूर ऊँचाई पे लगता है। इसी तरह अगर आप किसी का भला नहीं कर पा रहे तो ऐसे बड़े होने से भी कोई फायदा नहीं है।
निंदक नियेरे राखियेए आँगन कुटी छावायें ।
बिन पानी साबुन बिनाए निर्मल करे सुहाए ।
भावार्थ- कबीर दास जी कहते हैं कि निंदकहमेशा दूसरों की बुराइयां करने वाले लोगों को हमेशा अपने पास रखना चाहिएए
क्यूंकि ऐसे लोग अगर आपके पास रहेंगे तो आपकी बुराइयाँ आपको बताते रहेंगे और आप आसानी से अपनी गलतियां
सुधार सकते हैं। इसीलिए कबीर जी ने कहा है कि निंदक लोग इंसान का स्वभाव शीतल बना देते हैं।
बुरा जो देखन मैं चलाए बुरा न मिलिया कोय ।
जो मन देखा आपनाए मुझ से बुरा न कोय ।
भावार्थ- कबीर दास जी कहते हैं कि मैं सारा जीवन दूसरों की बुराइयां देखने में लगा रहा लेकिन जब मैंने खुद अपने मन में
झाँक कर देखा तो पाया कि मुझसे बुरा कोई इंसान नहीं है। मैं ही सबसे स्वार्थी और बुरा हूँ भावार्थात हम लोग दूसरों की
बुराइयां बहुत देखते हैं लेकिन अगर आप खुद के अंदर झाँक कर देखें तो पाएंगे कि हमसे बुरा कोई इंसान नहीं है।
दुःख में सुमिरन सब करेए सुख में करे न कोय ।
जो सुख में सुमिरन करेए तो दुःख काहे को होय ।
भावार्थ- दुःख में हर इंसान ईश्वर को याद करता है लेकिन सुख में सब ईश्वर को भूल जाते हैं।
अगर सुख में भी ईश्वर को याद करो तो दुःख कभी आएगा ही नहीं।
माटी कहे कुमार सेए तू क्या रोंदे मोहे ।
एक दिन ऐसा आएगाए मैं रोंदुंगी तोहे ।
भावार्थ- जब कुम्हार बर्तन बनाने के लिए मिटटी को रौंद रहा थाए तो मिटटी कुम्हार से कहती है दृ
तू मुझे रौंद रहा हैए एक दिन ऐसा आएगा जब तू इसी मिटटी में विलीन हो जायेगा और मैं तुझे रौंदूंगी।
पानी केरा बुदबुदाए अस मानस की जात ।
देखत ही छुप जाएगा हैए ज्यों सारा परभात ।
भावार्थ- कबीर दास जी कहते हैं कि इंसान की इच्छाएं एक पानी के बुलबुले के समान हैं जो पल भर में बनती हैं
और पल भर में खत्म। जिस दिन आपको सच्चे गुरु के दर्शन होंगे उस दिन ये सब मोह माया और सारा अंधकार छिप जायेगा।
Kabir ke dohe
चलती चक्की देख केए दिया कबीरा रोये ।
दो पाटन के बीच मेंए साबुत बचा न कोए ।
भावार्थ- चलती चक्की को देखकर कबीर दास जी के आँसू निकल आते हैं और
वो कहते हैं कि चक्की के पाटों के बीच में कुछ साबुत नहीं बचता।
मलिन आवत देख केए कलियन कहे पुकार ।
फूले फूले चुन लिएए कलि हमारी बार ।
भावार्थ- मालिन को आते देखकर बगीचे की कलियाँ आपस में बातें करती हैं कि आज मालिन ने फूलों
को तोड़ लिया और कल हमारी बारी आ जाएगी। भावार्थात आज आप जवान हैं कल आप भी बूढ़े हो जायेंगे
और एक दिन मिटटी में मिल जाओगे। आज की कलीए कल फूल बनेगी।
काल करे सो आज करए आज करे सो अब ।
पल में परलय होएगीए बहुरि करेगा कब ।
भावार्थ- कबीर दास जी कहते हैं कि हमारे पास समय बहुत कम हैए जो काम कल करना है वो आज करोए
और जो आज करना है वो अभी करोए क्यूंकि पलभर में प्रलय जो जाएगी फिर आप अपने काम कब करेंगे।
ज्यों तिल माहि तेल हैए ज्यों चकमक में आग ।
तेरा साईं तुझ ही में हैए जाग सके तो जाग ।
भावार्थ- कबीर दास जी कहते हैं जैसे तिल के अंदर तेल होता हैए और आग के अंदर रौशनी होती है
ठीक वैसे ही हमारा ईश्वर हमारे अंदर ही विद्धमान हैए अगर ढूंढ सको तो ढूढ लो।
जहाँ दया तहा धर्म हैए जहाँ लोभ वहां पाप ।
जहाँ क्रोध तहा काल हैए जहाँ क्षमा वहां आप ।
भावार्थ- कबीर दास जी कहते हैं कि जहाँ दया है वहीँ धर्म है और जहाँ लोभ है वहां पाप हैए
और जहाँ क्रोध है वहां सर्वनाश है और जहाँ क्षमा है वहाँ ईश्वर का वास होता है।
जो घट प्रेम न संचारेए जो घट जान सामान ।
जैसे खाल लुहार कीए सांस लेत बिनु प्राण ।
भावार्थ- जिस इंसान अंदर दूसरों के प्रति प्रेम की भावना नहीं है वो इंसान पशु के समान है।
जल में बसे कमोदनीए चंदा बसे आकाश ।
जो है जा को भावना सो ताहि के पास ।
भावार्थ- कमल जल में खिलता है और चन्द्रमा आकाश में रहता है। लेकिन चन्द्रमा का प्रतिबिम्ब जब जल में चमकता है
तो कबीर दास जी कहते हैं कि कमल और चन्द्रमा में इतनी दूरी होने के बावजूद भी दोनों कितने पास है।
जल में चन्द्रमा का प्रतिबिम्ब ऐसा लगता है जैसे चन्द्रमा खुद कमल के पास आ गया हो। वैसे ही
जब कोई इंसान ईश्वर से प्रेम करता है वो ईश्वर स्वयं चलकर उसके पास आते हैं।
जाती न पूछो साधू कीए पूछ लीजिये ज्ञान ।
मोल करो तलवार काए पड़ा रहने दो म्यान ।
भावार्थ- साधु से उसकी जाति मत पूछो बल्कि उनसे ज्ञान की बातें करियेए उनसे ज्ञान लीजिए।
मोल करना है तो तलवार का करो म्यान को पड़ी रहने दो।
जग में बैरी कोई नहींए जो मन शीतल होए ।
यह आपा तो डाल देए दया करे सब कोए ।
भावार्थ- अगर आपका मन शीतल है तो दुनियां में कोई आपका दुश्मन नहीं बन सकता
ते दिन गए अकारथ हीए संगत भई न संग ।
प्रेम बिना पशु जीवनए भक्ति बिना भगवंत ।
भावार्थ- कबीर दास जी कहते हैं कि अब तक जो समय गुजारा है वो व्यर्थ गयाए ना कभी सज्जनों की संगति की और ना ही कोई अच्छा
काम किया। प्रेम और भक्ति के बिना इंसान पशु के समान है और भक्ति करने वाला इंसान के ह्रदय में भगवान का वास होता है।
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