Shravan kumar की कथा
त्रैता युग में ऋषि शांतुनु एवं इनकी पत्नी अपने पुत्र के साथ अपना जीवन व्यतित कर रहे थे। ऋषि शांतुनु और उनकी पत्नी जन्म से ही दृष्टिहीन अर्थात अंधे थे। परन्तु इनकी यह कमी उन्हे कभी नही खली क्योकि उनकी आंखों का तारा उनका पुत्र श्रवण कुमार था।
श्रवण कुमार बहुत ही सरल स्वभाव का लड़का था . माता-पिता के लिए उसके मन में बहुत प्रेम एवं श्रद्धा थी वो दिन रात अपने माता-पिता की सेवा करता था।
अपने माता पिता का बच्चो की तरह लालन पालन करता था . उसके माता पिता भी स्वयं को भाग्यशाली महसूस करते थे और अपने पुत्र को बहुत स्नेह करते थे।
कई बार दोनों एक दुसरे से कहते कि हम कितने धन्य हैं कि हमें श्रवण जैसा पुत्र मिला, जिसने स्वयं के बारे में ना सोच कर, अपना पूरा जीवन, वृद्ध नेत्रहीन माता पिता की सेवा में लगा दिया, हम बड़े ही धन्य है श्रवण जैसा पुत्र प्राप्त हुआ।
जब श्रवण कुमार के मन में अपने माता पिता को तीर्थ पर ले जाने की बात सोची तो वह अपने माता पिता को कहता है कि पिताजी में आप दोनों को चारो धाम की यात्रा कराना चहता हूं, तभी श्रवण के माता पिता एक स्वर में कहते है कि पुत्र श्रवण तुम्हारा विचार तो सही है किन्तु हम चारों धाम नहीं जाना चाहते क्योंकी हमारे चारो धाम तो तुम्हारे पास ही है, किन्तु श्रवण कुमार हठ कर लेते है और कहते है कि नही माता-पिता में आपको चारों धाम की यात्रा अवश्य कराउंगा।
Shravan Kumar

श्रवण के बार बार मनाने पर दोनो यात्रा की सहमति दे देते है ।
श्रवण अपने माता पिता को तीर्थ करवाने हेतु एक कावड़ तैयार करता हैं जिसमे एक तरफ शांतुनु एवम दूसरी तरफ उनकी पत्नी बैठती हैं . और कावड़ के डंडे को अपने कंधे पर लादकर यात्रा आरंभ करता हैं . उसके हृदय में माता पिता के प्रति इतना स्नेह हैं कि उसे उस कावड़ का भार भी, भार नहीं लगता, अपने पुत्र के इस कार्य से माता-पिता का मन प्रसन्नता से भर उठता हैं ।
पुराणों में माना जाता है कि ऋषि शांतुनु की पत्नि को अयोध्या के राजा दशरथ ने बहन माना था। और जब राजा दशरथ को यह ज्ञात होता है कि श्रवण अपने माता पिता को चार धाम यात्रा के लिये निकल गया है तब राजा दशरथ अपने राज्य में एक सुन्दर तालाब का निर्माण करवाते है, और कहते है कि जब श्रवण अपने माता पिता को लेकर यहां से गुजरेगा तब उनकी पानी की कमी न हो इसलिए यह तालाब निर्माण किया गया है।
और यह निर्णय लेते है कि जब तक श्रवण कुमार एवं उसके माता-पिता यहां का पानी नहीं पी लेते तब तक इस तालाब की सुरक्षा जानवरों से मै स्वयं करूंगा जिससे कि तालाब दुषित न हो जाये। यह सब कहकर राजा प्रतिदिन तालाब का पहरा देने लगा और जंगली जानवरों से तालाब की रक्षा करने लगे थे ।
जब श्रवण कुमार तीर्थ करते करतें अयोध्या नगरी पहुँचते हैं, तब माता पिता श्रवण से कहते हैं कि उन्हें प्यास लगी हैं . श्रवण कावड़ को जंगल में रखकर, मिट्टी का घड़ा लेकर उसी तालाब मंे पानी भरने के लिये जाते है जिसका निर्माण स्वयं राजा दशरथ ने अपनी बहन, बहनोई एवं श्रवण के लिये किया था, जब श्रवण कुमार तालाब से घड़े में पानी भर रहे थे, उसी समय, अयोध्या के राजा दशरथ तालाब के पहरे पर निकले थे और उस घने वन में वह कुछ पानी में हल चल की आवाज आती हैं
उस हलचल को हिरण के पानी पिने की आवाज समझ कर महाराज दशरथ तालाब की रक्षा के उद्देश्य से तीर चला देते हैं और उस तीर से श्रवण कुमार के हृदय में बाण लग जाता है, और उसके मुँह से पीड़ा भरी आवाज निकलती हैं जिसे सुन दशरथ स्तब्ध रह जाते हैं और उन्हें अन्हौनी का अहसास होता हैं और वे भागकर तालाब के तट पर पहुंचते हैं, जहाँ वे अपने तीर को श्रवण के ह्रदय में लगा देख भयभीत हो जाते हैं और उन्हें अपनी भूल का अहसास होता हैं
दशरथ, श्रवणकुमार के समीप जाकर उससे क्षमा मांगते हैं, तब अंतिम सांस लेता श्रवण कुमार महाराज दशरथ को अपने वृद्ध नेत्रहीन माता पिता के बारे में बताता हैं और कहता हैं कि वे प्यासे हैं उन्हें जाकर पानी पिला दो और उसके बाद उन्हें मेरे बारे में कहना और इतना कह कर श्रवण कुमार की मृत्यु हो जाती है, भारी ह्रदय के साथ महाराज दशरथ श्रवण के माता पिता के पास पहुँचते हैं और उन्हें पानी पिलाते हैं . माता पिता आश्चर्य से पूछते हैं उनका पुत्र कहा हैं ? वे भले ही नेत्रहीन हो, पर वे दोनों अपने पुत्र को आहट से ही समझ लेते थे . माता पिता के प्रश्नों को सुन महाराज दशरथ उनके चरणों में गिर जाते हैं और बीती घटना को विस्तार से कहते हैं
पुत्र की मृत्यु की खबर सुनकर माता पिता रोने लगते हैं और दशरथ से उन्हें अपने पुत्र के पास ले जाने को कहते हैं . महाराज दशरथ कावड़ उठाकर दोनों माता पिता को श्रवण के शरीर के पास ले जाते हैं . माता पिता बहुत जोर-जोर से विलाप करने लगते हैं, उनके विलाप को देख महाराज दशरथ को अत्यंत दुःख आभास होता हैं और वे अपनी करनी की क्षमा याचना करते हैं लेकिन दुखी माता-पिता महाराज दशरथ को श्राप देते हैं कि जिस तरह हम पुत्र वियोग मर रहे है ठीक उसी प्रकार तुम भी अपने पुत्र वियोग में मरोगे . इतना कहकर दोनों माता- पिता अपने शरीर को त्याग देते हैं ।
महाराज दशरथ श्राप मिलने से अत्यंत व्याकुल हो जाते हैं और कई वर्षाे बाद जब उनके पुत्र राम का राज्य अभिषेक होने वाला होता हैं, तब माता कैकई के वचन के कारण राम, सीता और लक्षमण को चौदह वर्षाे का वनवास स्वीकार करना पड़ता हैं और इस तरह महाराज दशरथ राम के वियोग में उनकी भी मृत्यु भी पुत्र वियोग में होती है।
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Shravan Kumar
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