
भगवान श्री पार्श्वनाथ चालीसा
दोहा
शीश नवा अरिहंत को, सिद्धन करूं प्रणाम।
उपाध्याय आचार्य का ले सुखकारी नाम।
सर्व साधु और सरस्वती, जिन मंदिर सुखकार।
अहिच्छत्र और पार्श्व को, मन मंदिर में धार।
चौपाई
पार्श्वनाथ जगत हितकारी,
हो स्वामी तुम व्रत के धारी।
सुर नर असुर करें तुम सेवा,
तुम ही सब देवन के देवा।
तुमसे करम शत्रु भी हारा,
तुम कीना जग का निस्तारा।
अश्वसेन के राजदुलारे,
वामा की आंखों के तारे।
काशीजी के स्वामी कहाए,
सारी परजा मौज उड़ाए।
इक दिन सब मित्रों को लेके,
सैर करन को वन में पहुंचे।
हाथी पर कसकर अम्बारी,
इक जंगल में गई सवारी।
एक तपस्वी देख वहां पर,
उससे बोले वचन सुनाकर।
तपसी! तुम क्यों पाप कमाते,
इस लक्कड़ में जीव जलाते।
तपसी तभी कुदाल उठाया,
उस लक्कड़ को चीर गिराया।
निकले नाग-नागनी कारे,
मरने के थे निकट बिचारे।
रहम प्रभु के दिल में आया,
तभी मंत्र नवकार सुनाया।
मरकर वो पाताल सिधाए,
पद्मावती धरणेन्द्र कहाए।
तपसी मरकर देव कहाया,
नाम कमठ ग्रंथों में गाया।
एक समय श्री पारस स्वामी,
राज छोड़कर वन की ठानी।
तप करते थे ध्यान लगाए,
इक दिन कमठ वहां पर आए।
फौरन ही प्रभु को पहिचाना,
बदला लेना दिल में ठाना।
बहुत अधिक बारिश बरसाई,
बादल गरजे बिजली गिराई।
बहुत अधिक पत्थर बरसाए,
स्वामी तन को नहीं हिलाए।
पद्मावती धरणेन्द्र भी आए,
प्रभु की सेवा में चित लाए।
धरणेन्द्र ने फन फैलाया,
प्रभु के सिर पर छत्र बनाया।
पद्मावती ने फन फैलाया,
उस पर स्वामी को बैठाया।
कर्मनाश प्रभु ज्ञान उपाया,
समोशरण देवेन्द्र रचाया।
यही जगह अहिच्छत्र कहाए,
पात्र केशरी जहां पर आए।
शिष्य पांच सौ संग विद्वाना,
जिनको जाने सकल जहाना।
पार्श्वनाथ का दर्शन पाया,
सबने जैन धरम अपनाया।
अहिच्छत्र श्री सुन्दर नगरी,
जहां सुखी थी परजा सगरी।
राजा श्री वसुपाल कहाए,
वो इक जिन मंदिर बनवाए।
प्रतिमा पर पालिश करवाया,
फौरन इक मिस्त्री बुलवाया।
वह मिस्त्री मांस था खाता,
इससे पालिश था गिर जाता।
मुनि ने उसे उपाय बताया,
पारस दर्शन व्रत दिलवाया।
मिस्त्री ने व्रत पालन कीना,
फौरन ही रंग चढ़ा नवीना।
गदर सतावन का किस्सा है,
इक माली का यों लिक्खा है।
वह माली प्रतिमा को लेकर,
झट छुप गया कुए के अंदर।
उस पानी का अतिशय भारी,
दूर होय सारी बीमारी।
जो अहिच्छत्र हृदय से ध्वावे,
सो नर उत्तम पदवी वावे।
पुत्र संपदा की बढ़ती हो,
पापों की इकदम घटती हो।
है तहसील आंवला भारी,
स्टेशन पर मिले सवारी।
रामनगर इक ग्राम बराबर,
जिसको जाने सब नारी-नर।
चालीसे को ‘चन्द्र’ बनाए,
हाथ जोड़कर शीश नवाए।
सोरठा
नित चालीसहिं बार, पाठ करे चालीस दिन।
खेय सुगंध अपार, अहिच्छत्र में आय के।
होय कुबेर समान, जन्म दरिद्री होय जो।
जिसके नहिं संतान, नाम वंश जग में चले।
– Parshwanath Chalisa in Hindi
Disclaimer: The lyrics published on KabirLyrics are sourced from traditional references, public domain materials, and community contributions. They are shared solely for devotional, educational, and cultural purposes. While we make every effort to ensure accuracy, occasional errors may occur. If you notice any content that requires correction or believe your rights are being affected, please contact us and we will take prompt action.
Comments: Leave a comment below if you have any thoughts on this Chalisa/Aarti. If you have any suggestions, you can do so. We will try to respond to all valuable comments. Please don't use any kind of abusive language or bad words in comments so that the website remains clean and positive.